इस बार महाशिवरात्रि पर तीन अद्भुत संयोग पड़ रहे हैं। पहला शनिवार होने के कारण शनि प्रदोष का योग बन रहा है तो इसी दिन स्वार्थ सिद्धि योग भी पड़ रहा है। वहीं तीसरा 30 वर्षों बाद सूर्य और शनि यानी पिता-पुत्र एक साथ शनि की कुंभ राशि में गोचर करेंगे। ऐसे में इस महाशिवरात्रि का विशेष महत्व बन रहा है।
डित राकेश कुमार शुक्ला ने बताया कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रहकर चार पहर भगवान शिव की पूजा करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य वर्ष भर कोई उपवास नहीं कर पाता, उसे केवल शिवरात्रि का व्रत करने से वर्षभर के व्रत का पुण्य प्राप्त हो जाता है।
उन्होंने बताया कि इस बार शिवरात्रि पर तीन अद्भुत संयोग बनने से यह त्योहार खास बन गया है। इसमें पहला यह कि शनिवार के दिन शिवरात्रि पड़ने से शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है। शनि प्रदोष का योग होने से संतान कामना की पूर्ति होती है इसलिए यह व्रत पुत्र दायक माना गया है।
मिलेगी सूर्य और शनि की एक साथ कृपा
दूसरा इसी दिन स्वार्थ सिद्धि योग भी पड़ रहा है। स्वार्थ सिद्धि योग में कोई भी कार्य करने से पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। वहीं तीसरा इस बार 30 वर्षों बाद सूर्य और शनि यानी पिता-पुत्र कुंभ राशि में गोचर कर रहे हैं। इसलिए इस बार व्रतियों को सूर्य और शनि की एक साथ कृपा प्राप्त होगी
चार पहर की पूजा का विधान
शिवरात्रि के व्रत में चार पहर की पूजा का विशेष विधान बताया गया है। इस बार शिवरात्रि पर चार पहर की पूजा का समय प्रथम प्रहर शाम 6:20 से रात्रि 9:30 तक, दूसरा प्रहर रात्रि 9:30 से रात्रि 12:40 तक, तीसरा पहर रात्रि 12:40 से प्रात: 3:50 तक, चौथा प्रहर प्रात: 3:50 से प्रात: 7:00 बजे तक है।
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इन चीजों से करें जलाभिषेक
शिवरात्रि व्रत पर गाय के दूध से शिव का अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति होती है। गन्ने के रस से अभिषेक करने से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने से कालसर्प दोष से भी मुक्ति प्राप्त होती है।
रात्रि 8:00 बजे से होगा शिव का जलाभिषेक
18 फरवरी को रात्रि लगभग 8:00 बजे चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ होगा और अगले दिन लगभग 4:15 सायंकाल समाप्त होगा। चतुर्दशी तिथि के प्रारंभ होने के साथ ही जलाभिषेक भी प्रारंभ हो जाएगा। इसके अलावा इसी समय से भद्रा प्रारंभ हो जाएगी लेकिन भद्रा का वास मृत्युलोक में न होने से भद्रा बाधक नहीं होगी।
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