उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता (UCC) पर बिल पास हो चुका. इसके साथ ही बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लगने जा रही है. यहां तक कि लिव-इन में रहने वालों को भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा. लेकिन इसी राज्य की कुछ जनजातियां ऐसी हैं, जिन्हें कई शादियों की छूट होगी. महिला-प्रधान इन समुदायों में महिलाएं भी एक साथ कई शादियां कर सकती हैं.
बीते बुधवार, 7 फरवरी को चर्चा के बाद समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड 2024 विधानसभा में पास हो गया. अब राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद ये कानून भी स्टेट में लागू हो जाएगा. इसपर सभी धर्मों में शादियों, तलाक, मेंटेनेंस और विरासत के लिए एक कानून होगा. लेकिन राज्य की कुछ जनजातियां ऐसी हैं, जिन्हें इससे अलग रखा गया.
कौन सी जनजातियां?
सरकारी पोर्टल पर देखें तो राज्य में पांच समूहों को जनजाति की श्रेणी में रखा गया. ये हैं- भोटिया, जौनसारी, बुक्शा, थारू और राजी. साल 1967 में इन्हें अनुसूचित जनजाति माना गया. इनकी पूरी आबादी मिलाकर करीब 3 प्रतिशत है, जिनमें से ज्यादातर गांवों में रहती हैं. अगर उन्हें भी यूसीसी में शामिल कर लिया जाए तो जनजातीय परंपराओं की खासियत खत्म होने लगेगी. यहां बता दें कि इनमें से कई जातियों में एक से ज्यादा शादियों का चलन रहा.
खुद को पांडवों के करीब बताते हैं
जौनसारी जनजाति में महिलाओं के बहुविवाह का चलन रहा. इसे पॉलीएंड्री कहते हैं. चकराता तहसील का रहने वाला ये समुदाय कई बार जौनसार बावर भी कहा जाता है, लेकिन ये दोनों अलग कम्युनिटी हैं. जौनसारी खुद को पांडवों के वंशज मानते हैं, जबकि बावर कौरवों के. यही वजह है कि दोनों में शादियां भी बहुत कम होती हैं, लेकिन शादियों को लेकर एक बात कॉमन है. इनमें बहुपतित्व की परंपरा रही. महिलाएं आमतौर पर एक घर में ही दो या कई भाइयों की पत्नियों के रोल में रहती थीं. इस शादी से हुई संतानों को बड़े भाई की संतान या कॉमन माना जाता.
क्यों शुरू हुआ होगा ये चलन?
माना जाता है कि है ऐसा केवल परंपरा के नाम पर नहीं हुआ, बल्कि इसलिए भी हुआ क्योंकि पहाड़ी इलाकों में जमीनों की कमी होती है. लोग खेती-बाड़ी के लिए बहुत मुश्किल से जमीन बना पाते. ऐसे में अगर परिवार बंट जाए तो जमीन के भी कई छोटे हिस्से हो जाएंगे और उसका फायदा किसी को नहीं मिल सकेगा. तो एक तरह से प्रैक्टिकल ढंग से भी ऐसा चलन आया होगा. एक तर्क ये भी रहा कि एक पति अलग कमाने-खाने के लिए बाहर जाए तो घर की देखभाल उतनी ही जिम्मेदारी से दूसरा पति कर सके.
दूसरी जनजातियों में बहुपत्नित्व दिखता रहा
जैसे कि थारू जाति में महिलाओं के अलावा पुरुष कई शादियां कर सकते हैं. लेकिन ये कोई पक्का नियम नहीं. आदिवासियों में परंपरा का मतलब लिखित या मौखिक नियम से नहीं, बल्कि सहूलियत से है. स्त्रियों या पुरुषों को अपने मनमुताबिक साथी चुनने की छूट रही. यही सोच बहुविवाह के रूप में दिखने लगी.
लिव-इन से अलग है इनकी जीवनसाथी चुनने की परंपरा
आमतौर पर कई शादियां वही पुरुष करते हैं, जिनकी उनके समाज में हैसियत अच्छी हो. इसका संबंध ताकत से भी देखा जाता रहा. भोटिया जनजाति के लोग बिना शादी ही साथ रहना शुरू कर देते हैं. ये समाज में स्वीकार्य भी है. लेकिन मॉडर्न लिव-इन से ये अलग है क्योंकि संतान होने पर दोनों ही उसकी जिम्मेदारी निभाते हैं.
राज्य सरकार ने ड्राफ्ट बनाने के दौरान उन क्षेत्रों का दौरा किया, जहां ये जनजातियां अधिक आबादी में हैं. उन्हें देखने और विवाह परंपराओं को समझने के बाद ही उन्हें इससे अलग रखा गया. माना जा रहा है कि मुख्यधारा में रहते लोगों की शादियों और परंपराओं को, जनजातियों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, वरना उनकी विशेषता खत्म हो जाएगी.
उत्तराखंड में किस ट्राइब की आबादी कितनी?
यहां थारू जनजाति के लोग सबसे ज्यादा हैं. ये कुल अनुसूचित जनजाति में करीब 33 प्रतिशत हैं.
इसके बाद 32 प्रतिशत के साथ जौनसारी हैं.
बुक्सा जनजाति इसमें 18.3 फीसदी आबादी का योगदान करती है.
भोटिया केवल 14 प्रतिशत हैं. राजी जनजाति की आबादी कम है.
भोटिया को राज्य की सबसे कम विकसित जाति भी माना जाता रहा.
इनके कल्चर में तिब्बत और म्यांमार की भी झलक मिलती है.
बहुत कम हो चुका बहुविवाह का चलन
महिला-प्रधान इन आदिवासी समूहों में महिलाएं पहाड़ों पर मुश्किल कामकाज करती रहीं. उन्हें काम के बंटवारे जैसी बातों के लिए भी बहुविवाह की अनुमति रही. या यूं कहा जाए कि खुली सोच वाले समुदायों में इसे लेकर कोई प्रतिबंध नहीं था. लेकिन चूंकि इसपर कोई नियम नहीं है, तो ये उनकी अपनी मर्जी से होता था.
धीरे-धीरे ये जनजातियां भी शहरों की तरफ जा रही हैं और उनकी तरह रहन-सहन अपना रही हैं. ऐसे में पॉलीगेमी या पॉलीएंड्री जैसा चलन उनमें भी काफी हद तक खत्म हो चुका. लेकिन सुदूर इलाकों में अब भी इस तरह का वैवाहिक स्ट्रक्चर है. इसे जस का तस बनाए रखने के लिए ही इन्हें यूसीसी से बाहर रखा गया.