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उपलब्धियों के साथ खिलाड़ी घर लौटे तो अपने ही राज्य के खेल विभाग की उपेक्षा ने गुलमर्ग के बुरे अनुभवों को ताजा कर दिया। विंटर गेम्स में प्रतिभाग के लिए उत्तराखंड से स्नो स्कीइंग, स्नो शू और स्की माउंटेनियरिंग के लिए दो कोच के साथ नौ खिलाड़ी नौ फरवरी को गुलमर्ग पहुंच गए थे, लेकिन उनका पहले ही दिन कड़वा अनुभव रहा।

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खेलो इंडिया विंटर गेम्स के सारे मेडल जीतकर भी उत्तराखंड के सितारे सरकारी तंत्र की अनदेखी से हार गए। प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए खेल विभाग से उन्हें किराया मिला न किट मिल सकी। जम्मू कश्मीर के गुलमर्ग में हाड कंपा देने वाली रात में उन्हें कमरे के लिए भटकना पड़ा। स्पर्धा में जीते तमगों की चमक में वे ये सारे दर्द भूल गए।

मगर जब इन उपलब्धियों के साथ घर लौटे तो अपने ही राज्य के खेल विभाग की उपेक्षा ने गुलमर्ग के बुरे अनुभवों को ताजा कर दिया। जम्मू कश्मीर के गुलमर्ग में 10 से 14 फरवरी तक खेलो इंडिया विंटर गेम्स आयोजित किए गए थे। विंटर गेम्स में प्रतिभाग के लिए उत्तराखंड से स्नो स्कीइंग, स्नो शू और स्की माउंटेनियरिंग के लिए दो कोच के साथ नौ खिलाड़ी नौ फरवरी को गुलमर्ग पहुंच गए थे, लेकिन उनका पहले ही दिन कड़वा अनुभव रहा।

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टीम के खिलाड़ियों के मुताबिक गुलमर्ग में रात कमरे के लिए इधर से उधर भटकना पड़ा। जबकि रहने के लिए और गुलमर्ग आने-जाने के लिए एसोसिएशन की ओर से उनसे प्रति खिलाड़ी 12 हजार रुपये लिए गए थे। खेेल विभाग और एसोसिएशन की ओर से उन्हें किट भी उपलब्ध नहीं कराया गया। इसके बावजूद राज्य के खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया।
कोई प्रोत्साहन नहीं मिला
पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक निवासी ऋषभ रावत ने स्नो शू 800 मीटर रेस में एक स्वर्ण पदक, 12 किलोमीटर रेस में कांस्य पदक और 800 मीटर में रजत पदक जीता। जबकि टिहरी गढ़वाल निवासी शालिनी राणा ने स्नो शू में 400 मीटर रेस में रजत, 400 मीटर में रजत और 10 किलोमीटर रेस में भी रजत पदक जीता। इसके अलावा मयंक डिमरी ने स्की माउंटेनियरिंग में दो स्वर्ण और एक रजत, जयदीप भट्ट ने एक स्वर्ण और दो रजत पदक जीते। टीम के कुछ खिलाड़ियों के मुताबिक 12 पदक जीतने के बाद यह उम्मीद लगाए थे कि उत्तराखंड लौटने पर खेल विभाग एवं खेल प्रायोजकों के माध्यम से कोई प्रोत्साहन मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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माता-पिता से लिए थे 12 हजार रुपये
खेलो इंडिया विंटर गेम्स में तीन मेडल जीतने वाले ऋषभ रावत के मुताबिक परेड ग्राउंड देहरादून में उनकी मुलाकात किसी सीनियर खिलाड़ी से हुई। उनके माध्यम से उसे स्नो शू रेस के बारे में जानकारी मिली। उन्हें बताया गया कि स्नो शू एसोसिएशन के माध्यम से खेल में प्रतिभाग किया जा सकता है। उनके पुराने रिकार्ड को देखते हुए एसोसिएशन ने उनका चयन किया। प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए आने जाने के खर्च के रूप में उनसे 12 हजार रुपये लिए गए। अपने माता-पिता से 12 हजार रुपये लेकर उन्होंने एसोसिएशन को यह धनराशि दी। टीम के अन्य खिलाड़ी भी अपने खर्च से विंटर गेम्स में प्रतिभाग के लिए गए।

सरकार ने किया सम्मान, नहीं मिला प्रोत्साहन

गुलमर्ग से मेडल लेकर टीम के उत्तराखंड लौटने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने टीम को सीएम आवास आमंत्रित कर बधाई दी, सीएम आवास में खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया, लेकिन सरकार और विभाग के स्तर से टीम जिस तरह के प्रोत्साहन की उम्मीद लगाए थी। उसे वह प्रोत्साहन नहीं मिला। हैरानी तो तब हुई जब खेल विभाग की ओर से यह कहा गया कि उसे प्रतियोगिता एवं इससे हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों की जानकारी तक नहीं है।

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खेलों को बढ़ावा देने के लिए यह प्रमोशनल इवेंट है। स्नो शू रेस अभी ओलंपिक खेल का हिस्सा नहीं है। यह उसका हिस्सा होगा तभी खिलाड़ियों को प्रोत्साहन एवं इनाम की राशि मिल पाएगी। अभी पौलेंड में भी ट्रैनिंग कैंप होना है। इसके लिए खिलाड़ियों को करीब एक लाख रुपये तक आने जाने का खर्च देना होगा। रही खिलाड़ियों को गुलमर्ग में कमरे न मिलने की बात, इतनी दिक्कत तो उठानी पड़ती है, यह बड़ी बात नहीं है। – अजय भट्ट, अध्यक्ष स्नो शू एसोसिएशन उत्तराखंड